सिविल सर्विसेज दिवस: सरकारी सेवा और चुनौती 

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*संजय दुबे*

आज सिविल सर्विसेज दिवस है याने सरकार के नुमाइंदों का दिन है। आज ही के दिन 1947के साल में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री माफ करे गृह मंत्री वल्लभ भाई पटेल ने देश के प्रशासनिक सेवा के अधिकारियो को संबोधित किया था। वल्लभ भाई पटेल को इस कारण भी याद रखने का बनता है कि वे खुद

लौह पुरुष थे और सरकारी अधिकारियो को “स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया” कहते थे। भारत की प्रशासनिक सेवा आज 77साल की प्रौढ़ सेवा हो गई है। अभाव से लेकर सुविधा के दौर में कितना बदलाव आया है इसे देखना जरूरी है। देश की आजादी के बाद विभाजन की त्रासदी ने सबसे बड़ी चुनौती व्यवस्थापन था। पाकिस्तान से भारत आए लोगो को पंडाल में रखने और उनके भोजन की व्यवस्था ही सबसे बड़ा लक्ष्य था। इसके साथ साथ ही देश के भीतरी रियासतों का एकीकरण का काम भी बड़े दायित्व का था। त्राणनकोर,हैदराबाद,भोपाल, जूनागढ़, और जोधपुर जैसे रियासतों ने विलय से इंकार कर दिया। सिविल सर्विसेज दिवस के संस्थापक वल्लभ भाई पटेल का ही दमखम था कि उन्होंने भारत के नक्शे में गड्ढा नही रहने दिया

आभार वल्लभ भाई पटेल का, उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियो के लिए बहुत ऊंचा प्रतिमान निर्धारित किया था जिसमे 1947से 1970तक प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु से लेकर लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल तक प्रशासनिक अधिकारी कायम रहे। बीते 54साल में शासकीय सेवा करने वालो के चारित्रिक पतन की पुस्तक में पन्ने बढ़ते जा रहे है। हर शासकीय सेवक से सरकारी सेवा में आने के साथ ही देश के संविधान और कानून के प्रति श्रद्धा और लोगो के प्रति द्वेष और पक्षपात से परे सेवा करने की शपथ अधिकृत रूप से लिखाई जाती है। 1971में पहला उदाहरण सार्वजनिक रूप से आया और देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी का रायबरेली लोकसभा चुनाव सरकारी कर्मचारियों का चुनाव में दुरुपयोग के नाम पर निर्वाचन रद्द कर दिया गया। आपातकाल में सरकारी अधिकारी पद दुरुपयोग के लिए कुख्यात हुए। 1971बैच की आई ए एस अफसर नीरा यादव को भ्रष्ट्राचार के मामले में तीन साल की सजा भी हुई थी।गठबंधन की सरकारों का दौर शुरू हुआ तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ये बोल कि “गठबंधन सरकार की अपनी मजबूरी होती है” सरकारी अधिकारियो के सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधियों और सफेदपोश अपराधियो के साथ गलबहिया की बाते सामने आने लगी। घोटालों की नीति बनाने वाले अधिकारियो की जमात खड़ी हो गई लेकिन बीते दस सालो में एक दल के बहुमत में आकर बनने वाली सरकार ने छोटी मछलियों के स्थान पर बड़ी मछलियों पर हाथ डालने का काम शुरू किया है।

अर्जुन सिंह पूर्व मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश ने बताया था कि प्रशासन घोड़े की तरह है उस पर नियंत्रण रखना व्यवस्थापिका को आना चाहिए। इसका नतीजा ये निकला कि बहुत से घोड़े खुद ही नियंत्रित हो गए।

आज के दौर में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के बीच के संबंध आम जनता में उत्सुकता और संदेह का है। सरकारी कामकाज के लिए व्यवस्थापिका अचूक हथियार बन गई है। ये सिविल सर्विसेज दिवस में सोच का विषय है । केवल स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ साथ सुविधा के नाम पर सरकारी कर्मचारी शोषित हो रहे है किए जा रहे है। बदले की भावना से काम करने वाले अधिकारियो के खिलाफत न होना चिंता का विषय है।सिविल सर्विसेज दिवस है याने सरकार के नुमाइंदों का दिन है। आज ही के दिन 1947के साल में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री माफ करे गृह मंत्री वल्लभ भाई पटेल ने देश के प्रशासनिक सेवा के अधिकारियो को संबोधित किया था। वल्लभ भाई पटेल को इस कारण भी याद रखने का बनता है कि वे खुद लौह पुरुष थे और सरकारी अधिकारियो को “स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया” कहते थे।
भारत की प्रशासनिक सेवा आज 77साल की प्रौढ़ सेवा हो गई है। अभाव से लेकर सुविधा के दौर में कितना बदलाव आया है इसे देखना जरूरी है। देश की आजादी के बाद विभाजन की त्रासदी ने सबसे बड़ी चुनौती व्यवस्थापन था। पाकिस्तान से भारत आए लोगो को पंडाल में रखने और उनके भोजन की व्यवस्था ही सबसे बड़ा लक्ष्य था। इसके साथ साथ ही देश के भीतरी रियासतों का एकीकरण का काम भी बड़े दायित्व का था। त्राणनकोर,हैदराबाद,भोपाल, जूनागढ़, और जोधपुर जैसे रियासतों ने विलय से इंकार कर दिया। सिविल सर्विसेज दिवस के संस्थापक वल्लभ भाई पटेल का ही दमखम था कि उन्होंने भारत के नक्शे में गड्ढा नही रहने दिया
आभार वल्लभ भाई पटेल का, उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियो के लिए बहुत ऊंचा प्रतिमान निर्धारित किया था जिसमे 1947से 1970तक प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु से लेकर लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल तक प्रशासनिक अधिकारी कायम रहे। बीते 54साल में शासकीय सेवा करने वालो के चारित्रिक पतन की पुस्तक में पन्ने बढ़ते जा रहे है। हर शासकीय सेवक से सरकारी सेवा में आने के साथ ही देश के संविधान और कानून के प्रति श्रद्धा और लोगो के प्रति द्वेष और पक्षपात से परे सेवा करने की शपथ अधिकृत रूप से लिखाई जाती है। 1971में पहला उदाहरण सार्वजनिक रूप से आया और देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी का रायबरेली लोकसभा चुनाव सरकारी कर्मचारियों का चुनाव में दुरुपयोग के नाम पर निर्वाचन रद्द कर दिया गया। आपातकाल में सरकारी अधिकारी पद दुरुपयोग के लिए कुख्यात हुए। 1971बैच की आई ए एस अफसर नीरा यादव को भ्रष्ट्राचार के मामले में तीन साल की सजा भी हुई थी।
गठबंधन की सरकारों का दौर शुरू हुआ तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ये बोल कि “गठबंधन सरकार की अपनी मजबूरी होती है” सरकारी अधिकारियो के सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधियों और सफेदपोश अपराधियो के साथ गलबहिया की बाते सामने आने लगी। घोटालों की नीति बनाने वाले अधिकारियो की जमात खड़ी हो गई लेकिन बीते दस सालो में एक दल के बहुमत में आकर बनने वाली सरकार ने छोटी मछलियों के स्थान पर बड़ी मछलियों पर हाथ डालने का काम शुरू किया है।
अर्जुन सिंह पूर्व मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश ने बताया था कि प्रशासन घोड़े की तरह है उस पर नियंत्रण रखना व्यवस्थापिका को आना चाहिए। इसका नतीजा ये निकला कि बहुत से घोड़े खुद ही नियंत्रित हो गए।
आज के दौर में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के बीच के संबंध आम जनता में उत्सुकता और संदेह का है। सरकारी कामकाज के लिए व्यवस्थापिका अचूक हथियार बन गई है। ये सिविल सर्विसेज दिवस में सोच का विषय है । केवल स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ साथ सुविधा के नाम पर सरकारी कर्मचारी शोषित हो रहे है किए जा रहे है। बदले की भावना से काम करने वाले अधिकारियो के खिलाफत न होना चिंता का विषय है।