क्या राधिका खेड़ा मामले की बड़ी कीमत कांग्रेस को चुकानी नहीं पड़ेगी ?

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*अनिल पुरोहित वरिष्ठ पत्रकार*

छह दिनों तक अपमान और अपने साथ हुई बदसलूकी के मामले में ‘न्याय’ नहीं मिलने से मर्माहत कांग्रेस और राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से त्यागपत्र देने के दो दिन बाद भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुकीं सुश्री राधिका खेड़ा ने जो खुलासे भाजपा प्रवेश से एक दिन पूर्व सोमवार को दिल्ली में आहूत अपनी पत्रकार वार्ता में किए हैं, उसके बाद यह कहने में कतई ऐतराज नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस कार्यालय महिलाओं के लिए किसी भी रूप में सुरक्षित जगह नहीं रह गया है। सुश्री खेड़ा द्वारा किए गए खुलासों के बाद तो कांग्रेस के लोगों को शर्म से गड़ जाना चाहिए और अपने मुँह से नारी सुरक्षा, सम्मान और न्याय की बातें बिल्कुल नहीं करनी चाहिए।

कांग्रेस में महिलाओं के हर तरह के शोषण का यह इतिहास बहुत पुराना है और सुश्री राधिका खेड़ा ने कांग्रेस की इस निकृष्ट मानसिकता के खिलाफ जो आवाज बुलंद की है, उसकी गूंज से कांग्रेस का समूचा राजनीतिक वजूद भरभरा जाने के आसार बढ़ गए हैं। कांग्रेस में महिलाओं के अपमान की यह कोई पहली घटना नहीं हैं। कांग्रेस का तो इतिहास ऐसी शर्मनाक हरकतों की गवाही दे रहा है। फिल्म जगत से कांग्रेस में आईं नगमा के साथ कांग्रेस दफ्तर में ही हुए अपमानजनक व्यवहार को छत्तीसगढ़ भूला नहीं है। रायपुर में लगभग सालभर पहले हुए कांग्रेस के जिस राष्ट्रीय अधिवेशन में प्रियंका वाड्रा ने गुलाब की पंखुड़ियों के लगभग दो किलोमीटर लंबे कालीन पर कदमताल की थी, उसी अधिवेशन के दौरान कांग्रेस के कैम्प कार्यालय (होटल) में कांग्रेस की उसी दलित महिला नेत्री अर्चना गौतम के साथ प्रियंका वाड्रा के ही निज सचिव ने अशिष्टता की सारी हदें पार कर दी थी, जो प्रियंका वाड्रा के जुमले ‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ’ की पोस्टर गर्ल थीं। नैना साहनी को तंदूर में भून डालने, भँवरीदेवी कांड रचने और अपनी ही एक वरिष्ठ महिला नेत्री को भरी सभा में ‘सौ टका टंच माल’ बताने की राजनीतिक संस्कृति की पोषक कांग्रेस में अपने प्रति ऐसे ही अशिष्ट आचरण से क्षुब्ध होकर ही प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस को बाय-बाय किया था और महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए सुष्मिता देव ने कांग्रेस को छोड़ा था।

राधिका खेड़ा के मामले में कांग्रेस जाँच करने का दिखावा कर मामले की लीपापोती करने में लगी थी, यह सुश्री खेड़ा के त्यागपत्र से स्पष्ट प्रतीत हो रहा है। कांग्रेस के डीएनए में ही राम-द्रोह और महिलाओं का तिरस्कार रचा-बसा है। अयोध्या जाकर प्रभु श्रीरामलला का दर्शन करने पर जो दुर्व्यवहार सुश्री खेड़ा के साथ कांग्रेस में किया गया, क्या उसकी बड़ी कीमत कांग्रेस को चुकानी नहीं पड़ेगी? प्रभु श्रीरामलला के दर्शन करके टारगेट बनने वालीं सुश्री खेड़ा कांग्रेस में पहली नेता नहीं हैं। जिस-जिसने भी प्रभु श्रीरामलला प्राण-प्रतिष्ठा के न्योते को ठुकराने के कांग्रेस आलाकमान के फैसले से असहमति दर्ज की थी, जिस-जिसने भी अपनी आस्था के वशीभूत होकर अयोध्या जाकर भगवान रामलला के दर्शन किए, उन सबको या तो कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया या फिर उन्हें कांग्रेस छोड़ने के लिए विवश कर दिया गया। आचार्य प्रमोद कृष्णम के निष्कासन से लेकर सुश्री खेड़ा के इस्तीफे तक का यह दौर कांग्रेस के उस दावे की बखिया उधेड़ रहा है जिसमें कांग्रेस के लोकतंत्र में विश्वास और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की डींगें हाँकते कांग्रेसी देशभर में अपना रामद्रोही व महिला-विरोधी राजनीतिक चरित्र लिए फिर रहे हैं। सुश्री खेड़ा के साथ जिस कांग्रेस में बदसलूकी हुए 6 दिन बीतने के बाद भी जब न्याय नहीं मिल सका और उनका आत्म-सम्मान सुरक्षित नहीं रहा तो उस कांग्रेस से देश की महिलाओं के सम्मान की रक्षा और उनके साथ न्याय की क्या उम्मीद रखी जाए?

अगर कांग्रेस महिला न्याय के ढोल पीट रही है, तब सवाल यह भी उठता है कि सुश्री खेड़ा को न्याय के लिए इतना लंबा इंतजार क्यों पड़ा? जबकि, इस घटना के ठीक दूसरे दिन कांग्रेस के नेशनल मीडिया कोऑर्डिनेटर पवन खेड़ा तो रायपुर में थे। छत्तीसगढ़ आकर दिल्ली लौटने के बाद पवन खेड़ा को इस मामले की सुध लेना याद आया! अगर वह चाहते कि सचमुच राधिका खेड़ा को न्याय मिले तो वहीं आमने-सामने सारी बात सुनकर मामले का पटाक्षेप कर देते और सुश्री खेड़ा को न्याय दिलवा देते। इसी बीच कांग्रेस नेत्री प्रियंका वाड्रा छत्तीसगढ़ आकर दो सभाएँ लेकर लौट गईं पर इस मामले में उनके मुँह से दो बोल तक नहीं फूटे और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तो इस मुद्दे पर सवालों से बचने के लिए यहाँ आयोजित अपनी पत्रकार वार्ता ही रद्द करके दिल्ली लौट गए। इसके बाद अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता का आत्म-सम्मान महफूज रखकर उन्हें न्याय के लिए 6 दिन का इंतजार कराया गया। सवाल यह है कि राधिका खेड़ा के मामले में कांग्रेस जाँच करने का दिखावा कर मामले की लीपापोती क्यों कर रही थी? क्या नेतृत्व इस ऊहापोह में था कि अगर राधिका खेड़ा को न्याय दिलाने पर उसे अर्चना गौतम को भी न्याय दिलाना पड़ता? हैरत की बात तो यह है कि जिस कांग्रेस के एकमात्र मालिक गांधी परिवार के तीन में से दो मुखिया महिलाएँ हैं, उस कांग्रेस में महिलाओं की यह स्थिति है।

इस मामले में पीड़ित पक्ष कोई साधारण महिला नहीं है, कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता थीं और वह खुलेआम कह रही थीं, सोशल मीडिया पर लिख रही थीं कि उनसे दुर्व्यवहार हुआ। सुश्री खेड़ा ने यह भी कहा था- “दुशील को लेकर कका का मोह एक लड़की की इज्जत से बढ़कर है।” पूर्व मुख्यमंत्री बघेल आखिर क्यों अपनी ही पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता के अपमान की कीमत पर किसी के प्रति मोहग्रस्त नजर आए? क्या भूपेश बघेल ‘भेंट-मुलाकात’ कार्यक्रम में एक महिला को ‘ए लड़की’ कहकर अपमानित की तर्ज पर ही अब सुश्री खेड़ा को भी उसी भाषा में नसीहत देने की फिराक में थे कि ‘ए लड़की, ज्यादा राजनीति मत कर।’ सवाल तो और भी हैं। प्रदेश कांग्रेस नेताओं के रवैए और राष्ट्रीय नेतृत्व की ढिलाई ने अंतत: सुश्री खेड़ा को कांग्रेस से अपना 22 साल पुराना नाता तोड़ने के लिए विवश किया, क्या इस बात के लिए कांग्रेस के नेता कभी खुद को माफ कर पाएंगे? कांग्रेस में न्याय मांगने के लिए राष्ट्रीय प्रवक्ता को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के पास सुरक्षा के लिहाज से अपनी माँ को साथ लेकर जाना पड़े, क्या कांग्रेस नेताओं को इस बात पर कभी शर्म महसूस होगी? विशाखा एक्ट तक यह कहता है कि कार्यस्थल पर हुई ऐसी हरकतों की शिकायत पर संस्था प्रमुख को तुरंत ध्यान देते हुए एक जाँच कमेटी बनानी चाहिए और उस कमेटी में महिलाओं की भागीदारी अनिवार्य रूप से हो। ऐसा नहीं होने पर संस्था प्रमुख भी दोषी माने जाएंगे। सुश्री खेड़ा के मामले में कांग्रेस नेतृत्व की ओर से चूँकि ऐसा कुछ नहीं किया गया है, इसलिए कांग्रेस प्रमुख भी इस पूरे मामले में क्या बराबर के दोषी नहीं माने जाएंगे?