June 24, 2025

दान में ममता और अहमता को छोड़ेंगे तभी रिश्ते मजबूत होंगे-दीदी मां मंदाकिनी

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00 जीवन में सफलता के लिए दया,दान और दमन का सही अर्थों में समझना जरूरी
00 काम, क्रोध, लोभ हैं सबसे बड़े शत्रु,इन वृत्तियों का करें त्याग

रायपुर। तब तक दया, दान और दमन हमारे जीवन में नहीं उतरेंगे, जब तक हम सही अर्थों में दिए गए उपदेशों को समझेंगे नहीं या उसे ग्रहण नहीं करेंगे, ये हमारे ऊपर है कि किन अर्थों में उन्हें लेना चाहते है। तब तक जीवन में सुख, आनंद और कल्याण की प्राप्ति नहीं होगी। हर जीव परमात्मा का अंश है, जहां से निकले और वहीं जाकर विलीन हो जाए यही शरणागति है, तभी पूर्ण शांति मिलेगी। ममता और अहमता को छोड़ेंगे तभी रिश्ते मजबूत और स्थायी होंगे।
सिंधु भवन शंकरनगर में श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ में श्रद्धालुओं को दीदी माँ मंदाकिनी ने ब्रम्हा जी द्वारा एक अक्षर  द पर दिए गए देवता, दानव और मानव के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि उन्होंने दिए गए उपदेश को किस अर्थ में लिया तब देवताओं ने कहा हमारे स्वभाव में जो वृत्तियां है उसका दमन करना चाहिए। दानव (राक्षसों) ने कहा कि स्वभाव से क्रूर और क्रोधी है इसलिए दया का प्रयोग करना चाहिए और अंत में मानव (मनुष्यों) ने कहा कि हम जन्मजात लोभी है इसलिए दान करना चाहिए। यह कोई एक जाति या वर्ण के लिए दिया गया उपदेश नहीं है बल्कि सभी के लिए आत्म निरीक्षण करने का है। रामचरित मानस में भी तो यही उपदेश दिया गया है।

दान में ममता और अहमता को छोड़ेंगे तभी रिश्ते मजबूत होंगे-दीदी मां मंदकिनी
मानस में दिए गए एक और उपदेश की व्याख्या करते हुए दीदी माँ मंदाकिनी ने कहा कि हमारे भीतर अधर्म, गुण और विकार भी तो है और सबसे प्रबल शत्रु है काम, क्रोध और लोभ। काम को मन में बिठाकर सुख की अनुभूति कर रहे है, अहम में क्रोध को छिपाकर स्वाभिमान की रक्षा कर रहे है और बुद्धि में लोभ को बसाकर संचय करने में ही लगे है। इस प्रकार जब आपने मन, बुद्धि और चित्त में इन शत्रुओं को बिठा रखा है,तो जीवन पर कैसे विजय प्राप्त कर सकेंगे, कैसे सफल होंगे? जीवन में सफल होना है तो दान करें, दया करें और गलत चीजों का दमन करें। इसे भी सूक्ष्मता से समझना होगा। दान देने का परिणाम क्या होना चाहिए? राजा दक्ष से बड़ा कोई दानी नहीं था उन्होंने अपनी बेटी सती का कन्यादान भगवान शंकर को किया, लेकिन यहां पर वे ममता से ऊपर उठ नहीं पाये। एक सभा में जब सारे लोग राजा दक्ष के सम्मान में खड़े हो गए लेकिन शंकर जी नहीं खड़े हुए, यही पर दक्ष को अपने पद का अभिमान आ गया। पद को मद में बदलने की देरी थी कि दान के सारे प्रतिफल चूर हो गए इसलिए गूढ़ मंत्र है कि दान में ममता के साथ अहमता का भी दान करना होगा।
आज क्यों टूट रहे हैं वैवाहिक संबंध
मानस मर्मज्ञ ने आधुनिक काल के वैवाहिक संबंधों पर बड़ा सवाल उठाया कि आज क्यों अल्प समय में वैवाहिक संबंध टूट रहे है। कुल, परिवार, संपन्नता देखकर ही तो बेटी का कन्यादान करते है, पर अपनी ममता और अहमता (अहंकार) को नहीं छोड़ पाते है और यही रिश्तों के टूटने का सबसे बड़ा कारण है। मैं और मेरा से ऊपर नहीं उठ पाते हैं।
दीदी माँ मंदाकिनी ने बताया कि भले ही उप निषेदों में दिए गए उपदेश या सूत्र कठिन है कह सकते है लेकिन रामचरित मानस में उसकी ही काफी सरल शब्दों में व्याख्या दी गई है। सृष्टि की आदिकाल से आज तक जोड़कर देख लें, सारी सृष्टि का बीज है राम नाम। जितने भी धर्म, शास्त्र, वेद, पुराण है उसका बीज है राम नाम। ये सारे उपदेश हम व आपके आत्म निरीक्षण के लिए है।