वैचारिक क्रांति: २२/ स्वामी रामकृष्ण परमहंस:शिवज्ञान से जीवसेवा और स्वामी विवेकानंद

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नरेंद्र:आपने ईश्वर को देखा है?
रामकृष्ण: हां।
“कैसे दिखते है ईश्वर?
“जैसे मैं तुम्हे देख रहा हूं। वैसे ही ईश्वर और इससे भी कहीं ज्यादा स्पष्ट।
मैं भी देखना चाहता हूं?
हा! देख सकोगे।”
और एक स्पर्श!
इतने में नरेंद्र ने दिव्य प्रकाशित सारा ब्रम्हांड घूम लिया।
फिर पुनः स्पर्श और सुध वापस।
फिर देखिए तो ललक उस बालक की, गुरू के बताए शिवज्ञान से जीवसेवा के मार्ग को अपनाकर ध्यानस्थ होने लगा ललक थी ईश्वर की अनुभूति।
एक दिन मठ के पास ही बैठा नरेंद्र ध्यान मग्न हो जाता है। और ईश्वर के साक्षात्कार को लक्ष्य बना धारणा ध्यान की अवस्था को पार करके समाधिस्थ होने लगता है।
एक शिष्य देखता है कि नरेंद्र अचेत पड़ा है दौड़ कर गुरुदेव के पास आता है। और वह तुरंत जाकर नरेंद्र के ध्यान को तोड़ देते है।
कहते है: तुम्हे विश्व वरेण्य बनना है। वसुधैव कुटुंबकम् का प्रणेता बनना है। तुम्हारा जन्म ही महान कार्य को हुआ है। तुम वही बालक हो जिसे मैंने स्वप्न में देखा था काली माता के कृपा से जो सप्तऋषियों को भी प्रिय रहा। और दिव्य प्रकाशित आभा लिए था तुम्हे मैने देखते ही जान लिया था की तुम वही योगी हो। तुम एक ध्यान योगी साधक हो तुम जब देखोगे कि तुमने अपना कार्य कर लिया और फिर तुम्हे ये संसार तुच्छ सा लगने लगेगा तो खुद योगमार्ग के द्वारा अपना शरीर छोड़ दोगे इसलिए अभी तुम्हे समाधि लेने की आवश्यकता नहीं है। इसका भी समय निश्चित है।
तब तक नरेंद्र ने भी ईश्वर की अनुभूति कर ही ली थी।
और हुआ भी आगे चलकर वह बालक नरेंद्र नाथ दत्त विश्व वरेण्य स्वामी विवेकानंद हुए। जिन्होने यूरोपीय देशों में भी भारतीय सभ्य संस्कृति को स्थापित कर दिया। उन्हे लाइटनिंग ओरेटर और साइक्लोनिक हिंदू मांक की संज्ञा दी गई। अमेरिका,शिकागो,वॉशिंगटन जैसे कई स्थानों में उनकी तस्वीरें लगने लगी उनका व्याख्यान सुना जाने लगा। और वह विश्व धर्म सम्मेलन जिसमे उन्हें सबसे अंतिम में मौका मिला बोलने का और जो किसी ने अब तक नही कहा था कहा विवेकानंद ने:”माय ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका” इतने में ही तालियों की गूंज से सभागार की दीवारें हिल गई। क्योंकि इसके पहले के सभी संबोधन रहे: “लेडीज एंड जेंटल मैन”। और जब स्वामी जी बोलने लगे तो सारे विद्वान जो मनचस्थ थे उनके साथ सारी जनता बेसुध सी सुनती रही सुनती रही।जिन्होने सभी को भाई बहन की संज्ञा देकर विश्व को ही एक परिवार बना दिया। इसके पहले उसी विदेशी जमीन पर सम्मेलन से पहले जिन्होने कई यातनाएं देखी,भूखे रहे,ठंड में पड़े रहे,पत्थर से मारा गया, फिर भी मार्ग से विचलित नही हुए और उन्हें भी मिले मूलर दंपत्ति मिस मैरी बहन भगिनी निवेदिता सरीखे लोग जिन्होंने उन्हें समझा कि ये कोई सामान्य पुरुष नही है और उनके ही पदचिन्हों में चल पड़े। स्वामी जी ने युवाओं के लिए ऐसे संदेश दिए जिसपर चलकर प्रत्येक युवा फौलादी और जनहितकारी हो सकता है। और उन्होने मां काली के आशीष से शिव ज्ञान से जीवसेवा के रामकृष्ण के सूत्र को जिया और वैसा ही कार्य परिणित किया।

जब आपके लक्ष्य बड़े हो तो अनंत साहस,अनंत ऊर्जा,अनंत शक्ति,अनंत धैर्य,अनंत आत्मविश्वास के साथ भटकाव रहित होकर आगे बढ़ना होता है। युवाओं को देश सेवा सर्वोपरी रखना होगा। जैसा सोचोगे वैसा बनोगे। तुम सोचो की तुम्हे क्या करना है। बलवान और फौलादी सीना वाले युवा ही देश के आधार है। युवाओं को ब्रम्हचर्य का ठीक ठीक पालन करना चाहिए। युवाओं को अपने गुरुजनों के महान कार्यों का अनुसरण करना चाहिए। मुझे बलवान वीर्यवान ओजवान सौ युवा मिल जाए तो सब कुछ बदला जा सकता है।कई कुरीतियों,भुखमरी गरीबी का दहन किया जा सकता है। कोई भी महान कार्य करने से पहले आपको उपहास,विरोध और स्वीकृति के दौर से गुजरना पड़ता है। उत्तिष्ठत जागृत प्राप्य वरान्नि बोधत “उठो जागो और तब तक रुको नहीं जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”

ये कुछ संदेश है स्वामी जी के देश के युवाओं के लिए और ऐसे कई संदेश है ये तो बस महासागर के एक बूंद सरीखे मैने उद्धृत कर दिए। युवा निर्णय करें खुद का ही क्या स्वामी जी ने जो कहा वह हुआ? क्या युवा भटकाव रहित होकर राष्ट्र निर्माता हो सकता है। एक अकेला चना भाड़ नही फोड़ता,एक अकेला थक जाएगा मिलकर बोझ उठाना इसे युवा समझे और युवा संगठित है क्या? महापुरुषों के वचनों को कितनो ने अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी किया? आज नशा,कामवासना,भोग विलास, ईर्ष्या, क्रोध और नैतिक पतन ही अधिकतर देखने को मिला है। अतः कैसे भारत देश की सभ्य संस्कृति की रक्षा हो पाएगी? आज पाश्चात्य संस्कृति हावी है। नग्नता और फूहड़ता ही तो समाजिक उच्च स्तर है। फिर कैसे स्वामी रामकृष्ण और विवेकानंद की धरती में उनका दिया सूत्र जीवंत होगा। विचारणीय।

लेखक                                                              एस. के.”रूप”
8462037009