आदिवासी जनजीवन और प्रकृति के रंग भर रहे मुरिया चित्रकार

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*छत्तीसगढ़ आदिवासी लोककला अकादमी की मुरिया चित्रकला कार्यशाला जारी*

रायपुर। छत्तीसगढ़ आदिवासी लोककला अकादमी की ओर से कला वीथिका महंत घासीदास संग्रहालय परिसर रायपुर में जारी मुरिया चित्रकला कार्यशाला में नौजवान और बुजुर्ग चित्रकार अपनी कल्पनाओं को रंग भर रहे हैं। नारायणपुर बस्तर के ये कलाकार लोक शैली में चित्र बना रहे हैं। इन चितेरों में नई पीढ़ी के साथ-साथ ऐसे बुजुर्ग अनुभवी चित्रकार भी हैं, जिन्होंने विदेश में भी अपनी कला से लोगों को रिझाया है।

*जर्मन लोगों से मिल चुकी है तारीफ* 

गढ़ बंगाल के 80 वर्षीय पेसाडुराम सलाम उम्र के इस पड़ाव में भी मुरिया पेंटिंग बनाने सक्रिय हैं। वह खेती किसानी भी करते हैं। देश-विदेश में इनके चित्रकला का संग्रह है। पेसाडुराम की कला से देश के विभिन्न राज्यों के लोग तो परिचित हैं ही लेकिन विदेश में भी इनकी कला के कद्रदान हैं। पेसाडुराम ने बताया कि 2001 में उन्हें जर्मनी जाने का मौका मिला था।
जहां उन्होंने एक म्यूजियम में आयोजित कार्यशाला में मुरिया पेंटिंग और कुछ काष्ठ शिल्प तैयार किए थे। तब वह इटली होते हुए जर्मनी गए थे। पेसाडुराम बताते हैं देश की तरह विदेश में भी लोक कलाकारों की पेंटिंग में कद्रदान बेहद दिलचस्पी दिखाते हैं। पेसाडुराम सलाम संभवत: इस उम्र के छत्तीसगढ़ के एकमात्र मुरिया चित्रकार हैं जिन्होंने विदेश में जाकर अपने चित्र व काष्ठ शिल्प प्रदर्शन किया है।

*आदिवासी जन-जीवन दर्शाते हैं पेंटिंग में*

गढ़ बंगाल नारायणपुर के रहने वाले 63 वर्षीय जयराम मंडावी पेशे से किसान हैं लेकिन चित्रकला में खूब रमे रहते हैं। आमतौर पर वह आदिवासियों के रोजमर्रा के जीवन को अपने चित्रों में उकेरना ज्यादा पसंद करते है। यहां तैयार हो रही उनकी पेंटिंग में माता का डोला ले जाते हुए ग्रामीण दिख रहे हैं।विभिन्न आदिवासी त्यौहार एक ही कैनवास पर

कार्यशाला में शामिल 24 वर्षीय युवा आदिवासी चित्रकार बलदेव मंडावी इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में ललित कला अंतिम वर्ष के मास्टर ऑफ फाइन आर्ट के छात्र हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी बलदेव विभिन्न विषयों पर अपनी चित्रकारी करते हैं और विभिन्न आदिवासी त्योहारों को एक ही कैनवास में गढ़ देते हैं।

उनकी चित्रकला मध्य प्रदेश की चित्र शैली श्याम पेंटिंग से प्रभावित लगती है। श्याम पेंटिंग मूल रूप से भोपाल के आसपास बनाई जाने वाली आदिवासी कला के रूप में जानी जाती है। बलदेव मंडावी आदिवासी कला के अंर्तगत चित्रकला से कला पारखियों के बीच अपनी अलग पहचान बन चुके हैं।

*काल्पनिकता को मूर्त रूप दे रहे सुखदेव*

28 वर्षीय आदिवासी युवा चित्रकार सुखदेव मंडावी अपने गांव के रोजमर्रा की दिनचर्या को कैनवास पर उतारना पसंद करते हैं। यहां वह अपनी काल्पनिकता को मूर्त रूप देते हुए प्रकृति से जुड़ी पेंटिंग भी बना रहे हैं।

*आंखें जवाब दे रही लेकिन हौसला बरकरार*

गढ़ बंगाल नारायणपुर के बुजुर्ग चित्रकार 65 वर्षीय बेलूर मंडावी यहां एक आदिवासी देव का चित्र बना रहे हैं। इनकी चित्रकला की विधि काफी चर्चित रहती है। पेन के डॉट की तरह किसी चीटियों के झुंड जैसा दिखने वाला इनका आकार लोगों को आकर्षित करता है। उम्र के इस पड़ाव में जब उनकी आंखें उनका साथ देना छोड़ रही हैं, तब भी उनकी चित्रकारी निरंतर जारी है। अगले माह उनकी आंख का ऑपरेशन राजधानी रायपुर में होना है लेकिन वह अभी आराम करने के पक्ष में नहीं है और निरंतर सृजन में जुटे हैं।

*कार्यशाला पर आधारित दो दिवसीय प्रदर्शनी* छत्तीसगढ़ आदिवासी लोककला अकादमी द्वारा विगत दिनों से शुरू हुई कलाओं पर आधारित विविध कार्यशाला में तैयार कृतियों की दो दिवसीय प्रदर्शनी 21 व 22 सितंबर को लगाई जा रही है।
अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल ने बताया कि मुरिया चित्रकला कार्यशाला 14 से 21 सितंबर तक, लौह शिल्प कार्यशाला 12 से 21 सितंबर तक और घड़वा कला कार्यशाला 11 से 21 सितंबर तक महंत घासीदास संग्रहालय परिसर रायपुर में जारी है। इन कार्यशालाओं में तैयार शिल्प व पेंटिंग की प्रदर्शनी 21 व 22 सितंबर को सुबह 11 बजे से शाम 5:00 बजे तक आगंतुक देख सकते हैं।