ऑपरेशन के पहले मरीज को घी पिलाकर थोरेसिक डक्ट इंजरी का किया सफल ऑपरेशन

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*शासकीय डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय में हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू की टीम ने किया जटिल ऑपरेशन *

*रोज 3 से 4 लीटर तक मरीज के चेस्ट ट्यूब में सफेद द्रव्य निकलता था*

रायपुर । सड़क दुर्घटना में घायल रायगढ़ नवागांव निवासी एक 29 वर्षीय युवक के दायें फेफड़े और रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से फेफड़े से एक विशेष प्रकार के द्रव्य काइल के रिसाव एवं जमाव से युवक बेहद गंभीर स्थिति में पहुंच गया था जिसके जीवन रक्षा के लिए एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू एवं टीम ने एक जटिल सर्जरी करते हुए युवक को नया जीवन दिया।

यह बहुत ही पेचीदा एवं जटिल सर्जरी होता है जिसमें चोट की जगह को पहचानना बहुत मुश्किल कार्य होता है इसलिए मरीज को ऑपरेशन से एक घंटा पहले 100 ग्राम घी एवं मेथिलीन ब्लू 10 एम. एल. दिया गया ताकि थोरेसिक डक्ट में चोट वाली जगह को पहचाना जा सके। इस ऑपरेशन में सबसे दिक्कत बात यह थी कि मरीज का फेफड़ा काइल के कारण पूर्णतः खराब हो गया था एवं सीमेंट जैसा तथा पत्थर के समान कठोर हो गया था। इस स्थिति में थोरेसिक डक्ट को पहचानना नामुमकिन सा था। फेफड़े के कैविटी में काइल के एकत्र होने की स्थिति को मेडिकल भाषा में काइलोथोरेक्स कहा जाता है।

आज यह मरीज पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हो रहा है एवं दिनों दिन वजन में भी वृद्धि हो रही है क्योंकि अब यह मरीज जो भी खाना खा रहा है वह उसके शरीर में लग रहा है। मरीज को ऑपरेशन हुए 12 दिन से भी ज्यादा हो गया एवं मरीज का चेस्ट ट्यूब भी निकाल दिया गया है। चूंकि मरीज को इस सड़क दुर्घटना में फेफड़े के साथ-साथ रीढ़ की हड्डी में भी चोट आयी थी इसलिए अगले इलाज के लिए इनको न्यूरोसर्जरी विभाग भेजा जाएगा।

तीन महीने में मरीज का वजन 28 किलो कम हो गया था क्योंकि मरीज जो भी खाता था उसका संपूर्ण पोषक तत्व दूधिया पदार्थ के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता था। ऑपरेशन के पहले मरीज को नस (इंट्रावेनस लाइन) से टोटल पैरेन्ट्रल न्यूट्रिशन (टीपीएन) दिया गया लगभग 18 दिन तक जिसके मरीज की स्थिति में सुधार हो सके क्योंकि भोजन के रास्ते उसको पोषक तत्व नहीं मिल सकता था।

आयुष्मान योजना के अंतर्गत यह ऑपरेशन पूर्णतः निशुल्क हुआ। यह ऑपरेशन और भी पहले हो सकता था परंतु मरीज के परिजन एवं स्वयं मरीज ने ऑपरेशन की सहमति नहीं दी क्योंकि इस ऑपरेशन में जान जाने का बहुत अधिक खतरा था क्योंकि थोरेसिक डक्ट बहुत ही जटिल अंगों के बीच छिपा हुआ होता है एवं मरीज अत्यधिक कमजोर हो गया था। ऑपरेशन में 3.5 से 4 घंटे एवं 3 यूनिट ब्लड लगा।

पेशे से पेंटर युवक को मोटरसाइकिल से एक्सीडेंट होने के बाद इसको रायगढ़ के एक प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया। वहां पर दायीं छाती में चेस्ट ट्यूब डाला गया परंतु चेस्ट ट्यूब में खून न आकर सफेद दूध जैसा पदार्थ बाहर निकलने लगा। लगभग एक महीने इलाज करने के बाद मरीज को रायगढ़ मेडिकल कॉलेज में शिफ्ट कर दिया गया परंतु वहां भी ठीक नहीं होने पर मरीज को मेडिकल कॉलेज रायपुर भेज दिया गया। मरीज के चेस्ट ट्यूब से रोज लगभग 3 से 3.5 लीटर सफेद द्रव्य काइल निकलता था।
जब मरीज लगभग 3 महीने बाद हार्ट-चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग पहुंचा तब तक मरीज का 28 किलो वजन कम हो गया था सिर्फ हड्डी का ढांचा ही बचा था एवं सांस लेने में तकलीफ के चलने मरीज को वेंटीलेटर पर रखना पड़ा था।
*क्या होता है थोरेसिक डक्ट एवं काइलोथोरेक्स एवं इसका ऑपरेशन जटिल क्यों होता है*
थोरेसिक डक्ट या पोषण नली, एक नली रूपी संरचना है जिसका काम हमारी आंतों से हमारे भोजन के पाचन के बाद जो पोषक तत्व बनता है उसका अवशोषण करके पोषक तत्वों को रक्त में मिलाना है। इस नली का आकार 2-4 मिमी तक होता है एवं यह पेट से निकलकर दायीं छाती से होते हुए कंधे के मुख्य नस (लेफ्ट सबक्लेवियन वेन) में जाता है। इसके अंदर बहने वाला द्रव्य सफेद दूधिया रंग का होता है। यह इसोफेगस (esophagus) और महाशिरा (venacava) के बीच स्थित होता है जिसके कारण इसको पहचानना बहुत ही कठिन कार्य होता है। इसको पहचानने के लिए मरीज को वसा युक्त पदार्थ के साथ मेथिलीन ब्लू दिया जाता है जिससे यह पता चल पाता है कि यह नली कहां से टूटी है क्योंकि जहां पर यह नली टूटी होगी वहां पर नीले रंग का द्रव्य दिखना प्रारंभ हो जाएगा जिससे इस नली को पहचान कर उसका ऑपरेशन किया जा सके।