सत्त्वगुण से सुख मिलता है -डॉ इन्दुभवानन्द महाराज

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रायपुर। महामाया मंदिर सार्वजनिक न्यास समिति के सचिव व्यास नारायण तिवारी तथा न्यासी पं विजय कुमार झा ने बताया है कि पुरानी बस्ती महामाया मंदिर सार्वजनिक न्यास रायपुर के तत्वाधान मे गुप्त नवरात्रि के पावन पुनीत पर्व पर आयोजित श्रीमद् देवी भागवत की कथा का विस्तार करते हुए शंकराचार्य आश्रम के प्रमुख डॉ इन्दुभवानन्द महाराज ने कहा कि सत्त्वगुण से सुख की प्राप्ति होती है। सत्व गुण निर्मल स्वच्छ होने के कारण प्रकाश करने वाला होता है इसलिए इसे ज्ञान का वाचक भी कहा जाता है। सत्त्वगुण की अधिकता होने के कारण तमोगुण और रजोगुण की वृत्तियां साफ साफ दिखाई देती हैं। सत्त्वगुण विकार रहित होता है। किन्तु प्रकृति का गुण होने के कारण निर्विकार नहीं होता और वास्तव में प्रकृति का कार्य होने के कारण यह गुण भी सर्वथा विकार रहित नहीं है। सत्त्वगुण के दो रूप होते हैं एक शुद्ध सत्त्व और एक मलिन सत्व, मलिन सत्व रजोगुण से युक्त होता है। अतः वह परमात्मा के प्रकाश करने में समर्थ नहीं होता है। जबकि शुद्ध सत्व में परमात्मा का आभास होता है। आगे सुधी वक्ता ने रजोगुण और तमोगुण की व्याख्या करते हुए बताया की रजोगुण दुख का हेतु होता है तथा तमोगुण से व्यक्ति को मोह की प्राप्ति होती है। वास्तव में ये तीनों गुण परस्पर मिले हुए रहते हैं। इनकी साम्यावस्था को प्रकृति कहते हैं तथा विद्युत अवस्था को विकृति कहा जाता है। आज गुप्त नवरात्रि के पंचमी होने के कारण व्यापक जनसमुदाय श्रद्धालुओं का मंदिर परिसर में आगमन हुआ, तथा कथा श्रवण कर पुण्य फल प्राप्त किए। भागवत कथा के दौरान मां मानस मंडली धाराशिव बलौदा बाजार के जस गीत गायक तरुण कुमार एवं हिमांशु यादव द्वारा देवी के मंत्रमुग्ध करने वाले जस गीत तथा आरती गायन किया गया। उनका साथ कमलेश निषाद द्वारा तबले पर तथा आशीष साहू द्वारा हारमोनियम पर दिया गया। कथा व्यास ने आगे कथा का विस्तार करते हुए बताया कि नवरात्रि प्राप्त होने पर प्रत्येक व्यक्ति को देवी की उपासना करना चाहिए वर्ष में चार प्रकार की नवरात्रि होती है इसमें दो प्रगट और दो गुप्त नवरात्रि नवरात्रि होती है प्रगट नवरात्रि में 9 दिन देवी की उपासना करना चाहिए तथा गुप्त नवरात्रि में गुप्त साधना करना चाहिए। शारदीय नवरात्रि में विशेषकर कन्या पूजन ब्राह्मण पूजन सुवाषसिनी पूजन और दंपत्ति पूजन भी करना चाहिए। कन्या 2 वर्ष से 10 वर्ष तक की पूज्या मानी जाती है