“विलुप्त होते खेलों पर सरकार मेहरबान”
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*”खो-खो विश्वकप 2025, भारत में 13 से 19 जनवरी तक होगा”*
*जसवंत क्लॉडियस वरिष्ठ खेल पत्रकार *
हमारे देश में ऐसे बहुत से खेल हैं जो भले ही व्यावसायिक रूप से लाभप्रद ना हो परंतु आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रिय है। शतरंज, कबड्डी, मलखंब, योगासन जैसे खेलों के साथ ही खो-खो भी भारत के लोगों की पसंदीदा प्राचीन खेलों में से एक है। आधुनिक युग में प्रत्येक मनुष्य स्वयं को शारीरिक रूप से चुस्त-दुरुस्त रखना चाहता है तो फिर वह खेल से जुड़े रहने के लिए बाध्य है। सुबह-शाम के पैदलचाल से लेकर खुले या बंद कमरे वाले व्यायाम शाला में प्रत्येक उम्र के महिला या पुरुष को देखा जा सकता है। आखिर क्या है यह सबकुछ? यह है प्रत्येक खेल मैदान में उतरने का पूर्वाभ्यास। दौडऩा, उछलना, कूदना, पैदल चलना, वजन उठाना आदि सभी क्रिया किसी न किसी खेल से जुड़े होने का प्रमाण है। पुरातन भारत की संस्कृति ग्रामीण पृष्ठभूमि से आती है। हमारे देश में कम खर्च, कम खेल सामग्री, छोटे मैदान, कम समय में परिणाम आने वाले खेलों के बारे में बहुत सी जानकारी मिलती है। उनमें से एक है खो-खो। माना जाता है कि खो-खो का खेल वर्तमान महाराष्ट्र की धरती पर पला बढ़ा। इस खेल के बारे में महाभारत में उल्लेख मिलता है। पहले माना जाता है कि खो-खो रथों के प्रयोग से खेला जाता था। खो-खो के वर्तमान प्रकार पैर से खेलने की शुरुवात प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1914 से माना जाता है। पुणे के डेक्कन जिमखाना क्लब में प्रथमत: खो-खो के नियम बनाये गये। भारत में पहली बार खो-खो की राष्ट्रीय प्रतियोगिता आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा में 1959-60 में पुरुषों की फिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 1960-61 से महिला वर्ग की चैंपियनशिप शुरू हुई। खो-खो का खेल भारत के ग्रामीण अंचल में 1980 तक बहुत ही पसंद किया जाता था परंतु बाद में इसकी चमक धीरे-धीरे कम होने लगी। हालांकि 1936 के बर्लिन ओलंपिक में खो-खो को प्रदर्शन खेल के रूप में शामिल किया गया था। शतरंज मलखंब, कबड्डी, योगासन, खो-खो प्राचीनकाल में साथ ही अब वर्तमान में 21वीं सदी में रोल बाल जैसा खेल उभरकर सामने आया है। भारत में जन्में या अविष्कृत खेलों को लोकप्रिय बनाने की जिम्मेदारी वस्तुत: इस खेल के भारतीय फेडरेशन के पदाधिकारियों की है परंतु जैसे इस खेल को आज विश्व में लोकप्रिय होना चाहिए अब तक नहीं हो सका है। फिर भी अब कोशिश की जा रही है। खो-खो का खेल तीव्र गति, पूर्वानुमान, चतुराई और आक्रामक है। आज के लोगों तक इस खेल को पहुंचाने के लिए इस खेल के नियम में बहुत से परिवर्तन किए गए हैं। आधुनिक काल में सोशल व इलेक्ट्रानिक मीडिया द्वारा इसके सीधे प्रसारण से यह खेल न सिर्फ भारत बल्कि विश्व के कई देशों में अपनी उपस्थिति दिखला रहा है।
भारत में इन दिनों बहुत ही व्यवस्थित रूप से खो-खो को गांव-गांव तक पहुंचाने की रणनीति बनाई गई है। भारत के खो-खो फेडरेशन के अध्यक्ष सुधांशु मित्तल द्वारा इसके लिए भारत के दस शहरों के 200 शालाओं में इसके खेले जाने की विस्तृत योजना बनाई गई है। भारत में 50 लाख खो-खो के सदस्य बनाये जाने का लक्ष्य रखा गया है। फिलहाल पूरी दुनिया के 54 देशों में खो-खो को अंतर्राष्ट्रीय खो-खो फेडरेशन द्वारा मान्यता दी जा चुकी है। इस खेल की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए 13 से 19 जनवरी 2025 तक दिल्ली में विश्वकप आयोजित किया जा रहा है। इसमें छ: महाद्वीपों के 24 देश भाग ले रहे हैं जिसमें 20 पुरुष, 19 महिला टीम शामिल हैं। अध्यक्ष सुधांशु मित्तल ने कहा है कि 2032 में खो-खो को ओलंपिक खेलों में शामिल किए जाने का हमारा लक्ष्य है अत: यह विश्वकप हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।