रोलबाल: चौथा एशियाई चैंपियनशिप भारत में अविष्कृत खेल अब नई ऊंचाइयों की ओर
1 min readShare this
*जसवंत क्लाडियस*
भारत में अविष्कृत खेल अब नई ऊंचाइयों की ओर
प्राचीनकाल से मनुष्य अपने नियमित कार्यों को समाप्त कर लेने के बाद मनोरंजन की तलाश में रहा है। इस दिशा में खेलकूद के क्षेत्र को मानव जाति द्वारा सदैव प्रमुखता दी गई।
एक सैनिक, कृषक, मजदूर या वैज्ञानिक, लेखक सभी इस बात की खोज में रहे हैं कि दिनभर के कार्यों की समाप्ति के बाद समय गुजारने, मस्तिष्क को तरोताजा रखने या मनोरंजन के लिए कुछ अलग तरह की गतिविधि में शामिल हुआ जाए। इसमें खेलकूद को प्राथमिकता दी जाती रही है। इसका परिणाम आज यह है कि संसार के लगभग 225 से ज्यादा देशों में कम से कम 800 ऐसे खेल खेले जाते हैं जिनके नियम बने हुए हैं। गेंद और हाथ से जल,नभ और धरती पर अनेक खेलों की खोज मनुष्य द्वारा की गई और जिसे खेला जा रहा है। गेंद और हाथ के खेलों में एक समय था जब व्हालीबाल, बास्केटबाल, वाटरपोलो, हैंडबाल आदि खेल प्रमुख रूप से खेले जाते थे परंतु समय में परिवर्तन और तथा मनोरंजन के लिए मनुष्य की चाहत ने अनेक आकर्षक खेलों को जन्म दिया। पैरों में स्केट को बांधकर भागने का जमाना आया तो स्टेकिंग की स्पर्धा शुरू हुई लेकिन बात यही तक थमी नहीं। भारत में भी प्रतिभाओं और खोजकत्र्ताओं की कमी नहीं रही। जिसका प्रमाण है कि कुछ खेलों को आज भी भारत में जन्म लेना स्वीकार किया जाता है। उनमें प्रमुखत: शतरंज, तलवारबाजी, मल्लयुद्ध, कुश्ती, तैराकी, पचीसा,ताश, कबड्डी, खो-खो, रथ दौड़, सांप-सीढ़ी आदि प्रमुख हैं। आधुनिक युग में नये खेलों की खोज में भारत के कुछ लोग प्रयासरत रहे और आखिरकार पुणे के निकट रहने वाले राजू दभाड़े जो कि व्यायाम शिक्षक थे वे स्केटिंग के माध्यम से 1999 के आसपास से शहरी इलाके के घरों में पेपर बांटा करते थे। उन्होंने गेंद और स्टेकिंग के सहारे रोलबाल खेल का अविष्कार किया।
राजू दभाड़े एक सच्चे देशभक्त और खेलकूद को मानव जीवन का जरूरी हिस्सा मानते थे। जब वे अपने प्रशिक्षणार्थियों को स्केटिंग सीखा रहे थे तभी बाजू वाले बास्केटबाल कोर्ट में अभ्यास कर रहे खिलाडिय़ों से गेंद छूटी और गेंद राजू के पास आई जिसे उन्होंने स्टेकिंग करते हुए वापस बास्केटबाल के कोर्ट में वापस भेजा। ऐसा कई बार हुआ आखिरकार राजू यह सोचने पर मजबूर हो गये कि स्केटिंग व गेंद के सामांजस्य से नया खेल क्यों नहीं बन सकता? फिर क्या था राजू दभाड़े के जूनन, लगन, समर्पण के कारण आखिरकार 2003 से 2005 तक नये खेल जिसे उन्होंने रोलबाल का नाम दिया उसका जन्म हो गया। वास्तव में यह खेल हैंडबाल, थ्रोबाल, स्केटिंग, बास्केटबाल का मिला जुला रूप है। राजू दभाड़े और उनके सहयोगियों के अथक के प्रयास से 2005 तक इस खेल के नियम आदि तैयार हो गये। इस तरह 21 वीं सदी में भारत ने विश्व को एक नये खेल को प्रस्तुत किया।
रोलबाल का खेल कड़े सतह पर आउटडोर व इंडोर दोनों ही जगह खेला जा सकता है और खेल बहुत तेज गति से होता है अत: आज रोलबाल विश्व के सबसे तेज खेल में एक खेल सम्मिलित हो गया है। इस खेल का आकर्षण आज के युवा वर्ग में बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। जिसकी वजह से यह खेल भारत के लगभग सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों तक फैल गया है। भारत में अविष्कृत यह खेल अब संसार के सभी महाद्वीपों तक पहुंच चुका है और 60 से 65 देशों में इस खेल के राष्ट्रीय संघ को मान्यता दी जा चुकी है। अब तक रोलबाल के 6 विश्वकप तथा तीन एशिया कप संपन्न हो चुके हैं। इसकी लोकप्रियता देखते हुए सभी महाद्वीपीय संघों को मान्यता दी जा चुकी है और अब रोलबाल के खेल को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ द्वारा मान्यता दिये जाने के लिए प्रयास जारी है। गोवा में चौथे एशियाई चैंपियनशिप का आयोजन आगामी 16 से 19 दिसंबर 2024 तक आयोजित किया रहा है। इस तरह एक सच्चे भारतीय, सरल इंसान राजू दभाड़े की मेहनत रंग ला रही है और रोलबाल की लोकप्रियता निरंतर बढ़ती जा रही है।