पुणे की घटना परिवार के लिए सबक
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*संजय दुबे*
सामाजिक परिवेश में अनेक घटनाएं ऐसी घटती है जिससे परिवार, समाज के कान भी खड़े होना चाहिए। समाचार पत्रों में पुणे की घटना लगातार सुर्खिया बनाए हुए है। रोज नए खुलासे हो रहे है। इस घटना में दो पक्ष है। पहले पक्ष में एक बिल्डर परिवार है।ये बिल्डर परिवार अपने परिवार एक नाबालिग सदस्य, नशे की हालत में एक लड़के और लड़की (दोनो ही साफ्टवेयर इंजीनियर थे) को गैर इरादतन हत्या का आरोपी है। दूसरे पक्ष में दो परिवार है, जिन्होंने अपने घर के एक एक सदस्य को इस दुर्घटना में खो दिया है। ईश्वर मृतात्मा को शांति और परिवार को दुख सहने की शक्ति दे।
आजकल का युग सामाजिक विघटन का युग है। परिवार नाम की संस्था के भीतर कितना कुछ घट रहा है ये सिर्फ हर परिवार के सदस्य जान रहे है। दीगर परिवार को किसी भी प्रकार का संवाद कम से कम नगरीय क्षेत्र में नहीं के बराबर रह गया है। आजकल पड़ोस में पड़ोसी नही अंजान रहते है। मोहल्ले में कितने लोग एक दूसरे को पहचानते है, ये त्रासदी है। एक समय हुआ करता था कि परिवार,समाज, पास पड़ोस वाले भी हस्तक्षेप कर लिया करते थे। इसके खत्म होने से “सामाजिक सर्विलेंस” खत्म हो चुका है। भले ही सारे घर मोहल्ले, सड़को में सीसीटीवी लग गए है लेकिन इनका उपयोग केवल संभावित घटनाओं को रोकने या घटना हो जाने के बाद इलेक्ट्रानिक साक्ष्य के रूप में प्राप्त करने के काम आता है।
आज के वातावरण में पुरुषो के साथ साथ महिलाएं भी रोजगार के क्षेत्र में अग्रणी हो रहे है, महिला सशक्तिकरण की दिशा में ये बेहतर कार्य है जिसकी सराहना की जानी चाहिए। रोजगार प्राप्त करने के बाद व्यक्ति स्वालम्बी तो होता है, आत्म निर्भर भी होता है और उसका आत्म विश्वास भी बढ़ता है। दूसरो के साथ साथ खुद के प्रति अच्छे बुरे निर्णय लेने का भी अधिकार मिलता है। देश का कानून अठारह साल के व्यक्ति को बालिग मानता है, इसका अर्थ है कि कोई भी(इसमें परिवार भी शामिल है) बालिग व्यक्ति पर अपने निर्णय थोप नहीं सकता है। दूसरा बालिग व्यक्ति के द्वारा स्वयं के लिए गए निर्णय पर कोई भी आपत्ति नहीं कर सकता है।
पुणे की पोर्शे कार दुर्घटना का समय रात्रि दो बजे की है।एक संपन्न परिवार के नाबालिग सदस्य शराब पीकर, दो सौ किलोमीटर की स्पीड से कार चला रहा है।दूसरी तरफ पुणे से हजार किलोमीटर दूर रह रहे दो परिवार के दो (एक युवकऔर एक युवती) सदस्य रात्रि के दो बजे मोटर साइकिल से किसी स्थान से वापस लौटते हुए दुर्घटना में अपनी जान खो देते है।
आजकल आजादी के मायने कुछ और है।एक संपन्न परिवार महंगी कार,क्रेडिट कार्ड देकर अपने परिवार के सदस्य को आजादी देता है तो दूसरे तरफ युवक युवतियां अपने दूर दराज में रह रहे परिवार को बिना जानकारी दिए आजादी का उपभोग करता है। मेरा मानना है कि पुणे की घटना में प्रभावित युवक युवती ने जरूर ही अपने अपने घर में ये बताया होगा कि दोनो रात दो बजे तक संभवतः पार्टी से वापस लौटेंगे। यदि नही बताए थे तो सोचिए कि देर रात पुणे पुलिस का फोन आए और ये सूचना मिले कि “आपके परिवार का सदस्य दुर्घटना के कारण नहीं रहा, पुणे में परिचित का नाम बताने का कष्ट करे,पोस्टमार्टम के पेपर में दस्तखत कराना है।” परिवार पर क्या गुजरी होगी?
देश के महानगर, बड़े छोटे नगर एक संक्रामक बीमारी के लपेट में आ गया है। ये बीमारी पश्चिमी सभ्यता के कारण पसरी बीमारी है। ये है पार्टी कल्चर, देर रात तक पार्टी, इस पार्टी में क्या होता है ? ये लिखने की जरूरत नही है। शुक्रवार, शनिवार, और रविवार को जाहिर पार्टी और बाकी दिनों गैर जाहिर पार्टी। परिवार में रहने वाले तो इस प्रकार की पार्टियों के लिए झूठ का सहारा लेते है, फिर भी उनकी आजादी सीमित है पारिवारिक दबाव के चलते। सबसे बड़ी दिक्कत है परिवार से सैकड़ों किलोमीटर दूर हॉस्टल, होम स्टे अथवा मिल जुल कर टू या थ्री बेडरूम के मकान को लेकर रहने वालो के साथ, इनको मिले रोजगार के कारण मिले आर्थिक स्वालंबन का सार्थक उपयोग के साथ साथ निरर्थक दुरुपयोग भी हो रहा है। इस मामले में माइक्रो परिवार के सदस्य अपने बच्चो की दूर दराज नौकरी के चलते सशंकित जीवन के दिन तो कम रात को ज्यादा गुजार रहे है। इस वातावरण के लिए जिम्मेदार हम ही है