अपने आपको पूरी तरह झोंकना होगा तब अभिनय में आएगी जान: पवार
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*महाराष्ट्र नाट्य मंडल के बीच सुप्रसिद्ध रंगकर्मी ने साझा किए अपने अनुभव*
*रंगमंच व छत्तीसगढ़ सिनेमा के डॉ. योगेंद्र चौबे ने भी नाटकों को लेकर दिए टिप्स*
रायपुर। अभिनय में जान फूंकने के लिए अपने आप को पूरी तरह झोंकना पड़ता है। सारी बातों को भूलकर सिर्फ अपनी भूमिका में ध्यान केंद्रित करना होता है और फिर यह मेहनत और समर्पण रंगमंच पर या पर्दे पर नजर आती है। महाराष्ट्र नाट्य मंडल के सदस्यों से बात करते हुए मराठी सिनेमा और रंगमंच के सशक्त हस्ताक्षर प्रमोद पवार उक्ताशय के विचार व्यक्त किए।
इससे पहले प्रमोद पवार और डॉ. योगेंद्र चौबे को महाराष्ट्र मंडल के अध्यक्ष अजय काले, उपाध्यक्ष श्याम सुंदर खंगन, सचिव चेतन दंडवते महाराष्ट्र नाट्य मंडल के निर्देशक अनिल श्रीराम कालेले व सचिव प्रसन्न निमोणकर ने सूत माला, शाल- श्रीफल और स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया।
मराठी नाटकों के छह हजार से अधिक मंचन करने वाले व सिनेमा में लगभग 35 साल से सक्रिय वरिष्ठ कलाकार प्रमोद पवार फिलहाल स्टार प्रवाह पर प्रसारित धारावाहिक ‘घरो घरी माती ची चूल’ में नाना की भूमिका निभा रहे हैं। पवार ने वर्ष 1990 में पहली ही फिल्म आघात में अशोक सराफ, नीलू फुले सहित कई दिग्गज कलाकारों के साथ काम किया था। उन्होंने कहा कि करियर बनाने के समय ही उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति अभिनय में ही अपने आप को स्थापित करने और इससे ही अपनी आजीविका चलाने की थी। इसमें वे सफल भी हुए।
पवार ने कहा कि पारिवारिक दबाव के कारण उन्होंने एमटीएनएल में नौकरी की। कुछ समय में ही वे यह सब छोड़कर बचपन से तय अपने लक्ष्य की ओर बढ़ गए। पवार बताते हैं कि उनका बहुचर्चित नाटक ‘आणी सावरकर’ के अब तक करीब 500 शो हो चुके हैं। इस नाटक के बाद ही उन्होंने लेखन और फिर निर्देशन में अपना हाथ आजमाया। अब वे संगीत नाटकों पर भी लगातार काम कर रहे हैं। पवार मुंबई साहित्य संघ के सचिव और अखिल भारती नाट्य विधा संस्कार भारती के संयोजक हैं। वे यहां संस्कार भारती के तीन दिवसीय रंग संस्कार महोत्सव के दौरान नाट्य निर्देशन और नाट्य लेखन को लेकर कार्यशाला में मार्गदर्शन देने आए थे।
विशेष अतिथि डॉ. योगेंद्र चौबे ने कहा कि वे छत्तीसगढ़ के प्रथम ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने नेशनल स्कूल आफ ड्रामा नई दिल्ली से ग्रेजुएट किया और उसके बाद ड्रामा पर पीएचडी। पहले वे वकालत करते थे। वकालत छोड़कर ड्रामा में गए थे और फिर जब ड्रामा से लौटे, तब इंदिरा गांधी संगीत विश्वविद्यालय में उन्होंने ड्रामा विभाग की स्थापना की और इसे ऊंचाइयों तक पहुंचाया। आज इस विश्वविद्यालय का स्वयं का प्रोडक्शन हाउस है। इससे संगीत विश्वविद्यालय को पिछले साल आठ लाख रुपये की आय भी हुई।
डॉ. चौबे ने बताया कि उन्होंने अमृता प्रीतम की लिखी कहानी पर एक छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाई है। उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और पुरस्कार भी। उन्होंने कहा कि प्रमोद पवार के साथ वह सिनेमा में भी काम कर रहे हैं। इस मौके पर महाराष्ट्र मंडल और महाराष्ट्र नाट्य मंडल के पदाधिकारी एवं सदस्य उपस्थित रहे।