कहानी एक अदम्य साहसी मां की उसकी बेटी की जुबानी

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28 मार्च को मेरी प्यारी अम्मा अपनी अनंत यात्रा पर निकल पड़ी हैं। अपने प्रस्थान से पहले, उन्होंने अपना शरीर एक मेडिकल कॉलेज को दान करने का एक उल्लेखनीय निर्णय लिया, जो शिक्षा और सेवा के प्रति उनके अटूट समर्पण का एक प्रमाण है। एक विज्ञान शिक्षिका के रूप में, उन्होंने अनगिनत छात्रों में जिज्ञासा की लौ जलाई, विशेषकर युवा लड़कियों को चिकित्सा में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया। उनका निस्वार्थ कार्य न केवल डॉक्टरों की भावी पीढ़ियों के लिए सीखने के अनुभव को समृद्ध करता है, बल्कि मानवता के लिए उनकी असीम करुणा और प्रेम का भी प्रतीक है। रायपुर मेडिकल कॉलेज के स्टाफ ने उनकी दयालुता और उदारता की विरासत का सम्मान करते हुए उनके फैसले को बेहद सम्मान और प्यार से अपनाया। उनकी आत्मा हम सभी को सीमाओं से परे सोचने और एक बेहतर, अधिक दयालु दुनिया के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करती रहे।
राजनांदगांव जिले के के कुमर्दा गाँव मे ठाकुर परिवार में जन्म लेकर अपनी जीवन यात्रा शुरू करने वाली मेरी मां एक असाधारण व्यक्तित्व की धनी थीं। मैथिल समाज की पहली महिला जिन्होंने जीतेजी मरणोपरांत अपने देहदान की इच्छा न सिर्फ अपने परिवार के सामने जाहिर की बल्कि मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर से मिलकर देहदान की संपूर्ण जानकारी भी स्वयं ही ऐकत्र की। अम्माँ ने सामाजिक बंधनों से परे जाकर अपनी पुत्री को उर्ध्व दैहिक दाहसंस्कार एवं श्राद्ध करने का उत्तराधिकारी भी बनाया और यह सब उन्होंने अपने जीवन काल में ही लिखकर रख दिया था। उनके ब्रह्मलीन होने के बाद हम चारों बहनों ने पूर्व में उनके द्वारा लिखित उनकी मरणोपरांत की सभी विश लिस्ट को पूरा करने का संकल्प लिया और इसलिए मेकाहारा मेडिकल कॉलेज में हम बहनों ने अपनी मां के पार्थिव शरीर को वहाँ के स्टूडेंट्स को पढ़ाने के लिए सुपुर्द किया।

मेरी मां शीला झा कई मायनों में असामान्य थीं। वह सांसारिक मामलों में नहीं फंसी, बल्कि उसने सरल लेकिन आनंददायक विकल्प चुने।
अपने समय से पहले, वह अपने परिवेश के अनुरूप ढल गईं और चिकित्सा का अध्ययन करना चाहती थीं, लेकिन समर्थन की कमी थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने गांव में महिलाओं की शिक्षा के लिए पहल की और हमारे विस्तारित परिवार के पालन-पोषण में मेरे पिता का समर्थन किया। उन्होंने सरकारी और लड़कियों के स्कूलों में पढ़ाया, जिससे उनके छात्रों पर अमिट प्रभाव पड़ा। काम के कठिन समय में वह मेरे पिता के साथ खड़ी रहीं और हमें प्यार और सम्मान का महत्व दिखाया। असहमति के बावजूद, उन्होंने हमेशा मेल-मिलाप कराया और हमें सिखाया कि कभी भी क्रोध को सुलझाए बिना नहीं सोना चाहिए। चार मजबूत लड़कियों की परवरिश के प्रति उनके समर्पण को देखना कई परिवारों के लिए प्रेरणादायक था।
मां एक मजबूत स्तंभ थीं, उन्होंने कभी अपनी इच्छाएं नहीं थोपीं बल्कि यह सुनिश्चित किया कि हम अपने कार्यों पर नियंत्रण रखें। वह वास्तव में मेरे पिता की आत्मीय थीं और हमारे बच्चों के पालन-पोषण में मदद करने के लिए सेवानिवृत्त हुईं। वह एक सौम्य, मुस्कुराती हुई महिला थीं, जहां भी जाती थीं सकारात्मकता फैलाती थीं। यात्रा और संगीत की प्रेमी, वह वास्तव में रोमांटिक थी, उसे रंगीन साड़ियों (गुलाबी रंग), इत्र और फूलों का शौक था।

वह अपनी सोच में क्रांतिकारी थीं, पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं से बंधी नहीं बल्कि अपने तरीके से आध्यात्मिक थीं। उन्होंने हमें तर्क और ईश्वर के प्रति प्रेम के साथ बड़ा किया, कभी भी पारंपरिक रीति-रिवाजों को प्रोत्साहित नहीं किया। वह सामाजिक और उदार थी, हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहती थी। अपने समय से परे, उन्होंने सावधानीपूर्वक अपने अंतिम संस्कार की योजना बनाई और यह सुनिश्चित किया कि हम उनके शरीर को चिकित्सा विज्ञान को दान करके अपना वादा निभाएं, जिससे 5 हजार से ज्यादा पढाई करनेवाले नए डॉक्टरों और मानव जाति को लाभ होगा।

वह न सिर्फ हमारे लिए बल्कि उनके देहदान से पढाई करनेवाले सैकड़ों छात्र और दर्जनों शिक्षकों के लिए वह सदैव एक मार्गदर्शक ज्योति बनी रहेंगी। मैं यह नहीं कहूंगी कि अम्मा की आत्मा को शांति मिले, बल्कि मैं उनके ज्ञान और मार्गदर्शन हमारे साथ सदैव बना रहे इसके लिए प्रार्थना करती हूं क्योंकि वह स्वर्ग से भी हमें देखती रहेंगी, अपना आशीर्वाद और प्यार बरसाती रहेंगी।

स्मिता झा ( श्रीमती शीला झा कि सबसे छोटी बेटी)