वर्ष 1952 से लेकर वर्ष 1971 तक बस्तर लोकसभा सीट पर निर्दलीयों का रहा वर्चस्व

1 min read
Share this

00 वर्ष 1952 के पहले चुनाव में निर्दलीय मुचाकी कोसा के 83.05 प्रतिशत वोट मिलने का कोई नही तोड़ पाया रिकार्ड
जगदलपुर। लोकतंत्र के पर्व का आगाज लोकसभा चुनावों की घोषणा के साथ हो गया है। छत्तीसगढ़ में 3 चरणों में मतदान होगा, पहले चरण का मतदान एकमात्र आदिवासी बाहुल्य आरक्षित सीट बस्तर लोकसभा के लिए 19 अप्रैल को होगा, इसके लिए अधिसूचना 20 मार्च को जारी की जाएगी। आदिवासी बाहुल्य आरक्षित सीट बस्तर लोकसभा का इतिहात बड़ा रोचक है, जिस बस्तर को आदिवासी-पिछड़ा माना जाता है, वहां की जनता की जागरूकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद वर्ष 1952 से लेकर वर्ष 1971 तक बस्तर लोकसभा सीट के चुनावों में यहां निर्दलीय जीतकर आते रहे। निर्दलीय प्रत्याशी के जीतने की परिपाटी वर्ष 1952 के पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा को 83.05 प्रतिशत वोट के रिकार्ड जीत के साथ जुड़ा है, इस रिकॉर्ड को आज तक कोई उम्मीदवार तोड़ नहीं पाया है। जबकि निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा के प्रतिद्वंदी कांग्रेस के सुरती क्रिसटैय्या को मात्र 16.95 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा था। मुचाकी कोसा को 1,77,588 और सुरती को 36,257 वोट मिले थे। दोनों के बीच जीत-हार का अंतर 66.09 प्रतिशत वोटों का था। इसके बाद अब तक लोकसभा चुनाव के इतिहास में अधिकतम वोट कांग्रेस के मनकूराम सोढ़ी के नाम पर है, जिन्हे 1984 के चुनाव में उन्हें 54.66 प्रतिशत वोट मिले थे।
आदिवासी बाहुल्य बस्तर लोकसभा सीट में निर्दलीय उम्मीदवारों के वर्चस्व को वर्ष 1980 में कांग्रेस ने तोड़ा, लेकिन यह मात्र 02 चुनावों तक ही सीमित रहा। वर्ष 1991 में पुन: निर्दलिय प्रत्याशी महेंद्र कर्मा ने कांग्रेस को हराकर जीत दर्ज की। इसके बाद भाजपा के बलीराम कश्यप इसके बाद 20 वर्षों तक अनवरत बस्तर लोकसभा सीट पर कमल खिलते रहे, लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव में दीपक बैज ने भाजपा के बैदूराम कश्यप को शिकस्त दी और बस्तर लोकसभा सीट फिर कांग्रेस के कब्जे में आ गई। बस्तर लोकसभा सीट के लिए मतदान में करीब एक माह का समय रह गया है। भाजपा ने यहां से महेश कश्यप को उम्मीदवार बनाया है। महेश लंबे समय तक संघ में सक्रिय रहे और विश्व हिंदू परिषद के जिला संगठन मंत्री बने। उन्होने बस्तर सांस्कृतिक सुरक्षा मंच का गठन कर संभागीय संयोजक के रूप में सक्रिय रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस ने आज दिनांक तक अपना प्रत्याशी नहीं तय किया है। हालांकि कांग्रेस से दीपक बैज और कवासी लखमा के पुत्र हरीश कवासी के नाम की चर्चा है।
उल्लेखनिय है कि वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ और पहली बार वर्ष 1952 में लोकसभा के चुनाव हुए। उस समय देश में लोकसभा की कुल 489 सीटें थीं। इनमें कांग्रेस ने 364 सीटों पर जीत दर्ज की और सरकार बनाई, लेकिन कांग्रेस बस्तर की लोकसभा सीट हार गई थी। इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा ने कांग्रेस प्रत्याशी सुरती किसतिया को 141331 वोटों से हराया था। निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा ने 177588 वोट हासिल किए, वहीं सुरती को महज 36257 वोट ही मिल पाए थे। हालांकि वर्ष 1957 में हुए अगले चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। पार्टी ने सुरती पर भरोसा जताया और उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार बोदा दारा को 99277 वोटो से शिकस्त दी थी। वर्ष 1952 से लेकर 1999 तक यह सीट मध्यप्रदेश में आती थी, वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद यह छत्तीसगढ़ में आ गई। वर्ष 1957 में बड़ी जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस का आगे के लोकसभा चुनावों में सूपड़ा साफ हो गया और वर्ष 1962, 1967, 1971 और 1977 में लगातार कांग्रेस की हार हुई। वर्ष 1962 में यह स्थिति हो गई कि कांग्रेस निर्दलीयों के मुकाबले तीसरे नंबर पर सिमट गई। वर्ष 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार जे सुंदरलाला ने जनसंघ प्रत्याशी आर झादो को बुरी तरह हराया। वहीं कांग्रेस की लोकप्रियता इतनी गिरी की वह लुढ़ककर पांचवें स्थान पर पहुंच गई। वर्ष 1971 में बस्तर लोकसभा के निर्दलीय प्रत्याशी लम्बोदर बलियार जीते और अगला चुनाव कांग्रेस से लड़े, लेकिन भारतीय लोक दल प्रत्याशी दृगपाल शाह केसरी से हार गए। लगातार 4 लोकसभा चुनावों में मिली हार कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था। इससे उबरने के लिए 1980 में कांग्रेस ने नए उम्मीदवार लक्ष्मण कर्मा को मैदान में उतारा। कांग्रेस का यह फैसला सही निकला और कर्मा ने जनता पार्टी के उम्मीदवार समारू राम परगानिया को हराया। इस जीत के बाद कांग्रेस ने वर्ष 1991 तक लगातार तीन चुनावों में जीत हासिल की। वर्ष 1984 से 1991 तक कांग्रेस ने मंकूराम सोड़ी को टिकट दिया, मानकूराम सोढ़ी मजबूत नेता साबित हुए। उन्होंने वर्ष 1984 में उन्होंने सीपीआई के महेंद्र कर्मा, 1989 में भाजपा के संपत सिंह भंडारी और 1991 में फिर भाजपा प्रत्याशी राजाराम तोडेम पर जीत दर्ज की। हालांकि 1996 में कांग्रेस उम्मीदवार मानकूराम को निर्दलीय महेंद्र कर्मा ने 14 हजार वोटों से हरा दिया।
वर्ष 1998 में भाजपा ने यहां से जीत का खाता खोला और 2014 तक इस सीट पर अपना कब्जा बनाये रखा। वर्ष 1998 से लेकर 2011 तक भाजपा के टिकट पर बलिराम कश्यप ने लगातार चार बार जीत हासिल की। वर्ष 2011 में उनके निधन के बाद यहां उपचुनाव करवाए गए, जिसमें उनके पुत्र दिनेश कश्यप जीते और कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। वर्ष 2014 के चुनाव में भी दिनेश कश्यप ने अपनी जीत को बरकरार रखा, फिर वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बैदूराम कश्यप पर चित्रकोट विधायक रहे दीपक बैज 38982 वोटों से जीत दर्ज की और बस्तर सांसद चुने गए।