पैतृक ग्राम में ग्रामीणों के साथ मनोज राजपूत ने देखी “गांव के जीरो शहर मा हीरो”

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रायपुर। आज से 15 साल पहले हम लोग फिल्म देखने के लिए वीसीआर का उपयोग करते थे लेकिन जैसे-जैसे आधुनिकता आने लगी उसमें ढलते चले गए और पुरानी चीजों को भूलने लगे। लेकिन “गांव के जीरो शहर मा हीरो” के निर्माता व हीरो मनोज राजपूत ने आज अपने गांव ग्राम खंजरी दारगांव में ग्रामीणों के साथ अपनी फिल्म को देखा और पुरानी यादों को ताजा किया क्योंकि इस में यह बताया गया है कि एक गांव का लड़का शहर में आकर भी अपने गांव की परंपरा और संस्कृति को काफी नहीं भूलता है। फिल्म को देखने के लिए पूरा गांव इक_ा हो गया था जैसे पुराने समय में हुआ करता था। फिल्म देखने के बाद सभी ग्रामवासियों ने मनोज राजपूत को बधाई दी और सिनेमाघरों में दोबारा देखने की बात कहीं। छत्त्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार एक निर्माता अपनी कहानी को अपने गांव में सबके साथ देखा।
यह फिल्म मनोज राजपूत के जीवन की वास्तविक घटनाओं पर आधारित है और रविवार की देर शाम को अपने गांव खंजरी दारगांव पहुंचे जहां पर ग्रामीणजनो ने उनका जोरदार स्वागत किया और उसके बाद उन्होंने अपने पुराने जमाने को याद करते हुए वीसीआर मंगवाया और ग्रामीणजनों के साथ बैठकर अपनी फिल्म “गांव के जीरो शहर मा हीरो” को देखा। जिसमें दिखा गया कि किस प्रकार उन्होंने अपने जीवन में संघर्ष किया, गांव छोडऩे से लेकर जेल जाने तक के सफर को बखूबी दर्शाया है। स्थितियां खराब होने की वजह से अपनी शिक्षा पूरी न कर पाने के बावजूद भी जीवन में आगे बढऩे की चाह रखने वाले मनोज छोटे से गांव से निकलकर अपना सपना पूरा करने शहर आते हैं और एक छोटे से रोजगार से शुरुआत कर व्यापार की दुनिया में बड़ा नाम बनाते हैं। इस दौरान उनके कार्यक्षेत्र में बाहरी लोगों द्वारा विभिन्न तरह से बाधा उत्पन्न किया, जिसके चलते उन्हें 2 बार जेल तक जाना पड़ा और वहां उन्हें किस प्रकार प्रताडि़त किया गया था, इन सब घटनाओं को फिल्म में दिखाया गया।