नाट्यशास्त्र का आधार है लोक:त्रिपाठी

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*”नाट्य शास्त्र तथा भारतीय लोक नाट्य” विषय पर हुआ व्याख्यान*

रायपुर। आदिवासी लोक कला अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद की ओर से मदन निषाद-लालू राम स्मृति व्याख्यान का आयोजन गुरुवार की शाम महंत घासीदास संग्रहालय परिसर रायपुर में रखा गया। जिसमें ‘नाट्य शास्त्र तथा भारतीय लोक नाट्य” विषय पर अतिथि वक्ता राधा वल्लभ त्रिपाठी ने विस्तार से जानकारी दी।
शुरुआत में अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय के महत्व पर अपनी बात रखी। मुख्य वक्तव्य देते हुए विद्वान वक्ता राधा वल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि संगीत-नृत्य जैसी कलाओं में प्रवर्तक के रूप में नाट्य शास्त्र ने अपना विशिष्ट योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्य के कुछ ऐसे ग्रंथ हैं, जिन्होंने विश्व संस्कृति के निर्माण में अपना विलक्षण योगदान दिया है। इनमें ऋग्वेद, वाल्मीकि रामायण, वेदव्यास का महाभारत, पाणिनी की अष्टाध्यायी, कौटिल्य का अर्थशास्त्र और भरत मुनि का नाट्यशास्त्र है। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि अंग्रेजी राज की शुरुआत में विलक्षण प्रतिभा के धनी सर विलियम जोंस 1784 में कलकत्ता में न्यायाधीश बन कर आए तो उन्होंने भारतीय ग्रंथों में रुचि दिखाई।
उन्होंने अभिज्ञान शाकुंतलम का अंग्रेजी में अनुवाद किया। इस भारतीय नाटक का प्रभाव हमें गेटे के नाटक में दिखता है। उन्होंने कहा कि सर विलियम जोंस की दिलचस्पी की वजह से हमारे भारतीय ग्रंथ नाट्य शास्त्र की खोज शुरू हुई। क्योंकि 12 वीं शताब्दी के बाद इसके पढ़ने-पढ़ाने की परंपरा खत्म हो चुकी थी। उन्होंने बताया कि यह सारे प्रयास अगले 100 साल तक चले और पहली बार 1894 में पूरा नाट्य शास्त्र छप कर आया। उन्होंने कहा कि इसके सामने आने से पूरी दुनिया का ध्यान भारत की कला परंपरा की ओर गया।
राधा वल्लभ त्रिपाठी ने बताया कि नाट्यशास्त्र में नाटक की पद्धतियां इसके प्रकार सहित तमाम जानकारियां है। उन्होंने कहा कि प्राचीन कालीन इस नाट्यशास्त्र का मूल आधार तो लोक ही है। लोक जीवन के क्रियाकलाप के आधार पर जब नाटक विकसित हुए तो इन्हें ही नाट्य शास्त्र में विस्तार से जगह दी गई। इस अवसर पर अध्यक्षता कर रहे डॉ. सुशील त्रिवेदी ने लोक नाट्य के महत्व पर अपनी बात रखी।