‘एकाग्र रमाकांत श्रीवास्तव’ पर दो दिवसीय साहित्यिक आयोजन शुरू

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दुर्ग। साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद संस्कृत विभाग छत्तीसगढ़ शासन और हिंदी विभाग शासकीय विश्वनाथ यादव तमस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय ‘एकाग्र रमाकांत श्रीवास्तव’ की शुरुआत गुरुवार को हुई।
महाविद्यालय के राधाकृष्णन सभागार में सुबह पहले सत्र की शुरुआत करते हुए साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने आयोजन के महत्व पर रोशनी डाली। संयोजकीय वक्तव्य देते हुए कथाकार जयप्रकाश ने कहा कि रमाकांत श्रीवास्तव को एक खास दौर का विशिष्ट लेखक माना जाता है लेकिन वह उस दौर के आगे के भी लेखक हैं।
बीज वक्तव्य देते हुए शशांक ने कहा कि रमाकांत श्रीवास्तव की कहानियों में कथानकों का चयन विविध तरह के दिखता है। उन्होंने संस्कृति में व्याप्त दोहरे चरित्रो को अपनी कहानी में उकेरा है। शशांक ने इस दौरान रमाकांत श्रीवास्तव की ‘उस्ताद के सुर’ सहित कुछ महत्वपूर्ण कहानियों का जिक्र किया।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य आरएन सिंह ने इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया कि रमाकांत श्रीवास्तव ने ना सिर्फ खुद लिखा बल्कि युवा साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने का काम भी किया। इस सत्र में धन्यवाद ज्ञापन अभिनेश सुराना ने किया।


अगला सत्र ‘रमाकांत श्रीवास्तव का कथा संसार-कथा भूमि की तलाश’ विषय पर हुआ। जिसमें अपनी बात रखते हुए कथाकार मुकेश वर्मा ने कहा कि रमाकांत श्रीवास्तव की कहानियों का हर पात्र दूसरे पात्र से अलग, अनोखा और अनूठा है। वह हमारे भीतर वह धीरे-धीरे अपनी जगह बनाता जाता है। लेखक व प्रकाशक महावीर अग्रवाल ने रमाकांत श्रीवास्तव के कृतित्व के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने अपने कुछ निजी संस्मरणों का भी खास तौर पर जिक्र किया।
साहित्यकार प्रभु नारायण वर्मा ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि रमाकांत श्रीवास्तव उन लेखकों में से हैं जिनको कहानी लिखने विषय खोजना नहीं पड़ता। उन्होंने प्रख्यात साहित्यकार रसूल हमजातोव को उद्धृत करते हुए कहा कि-‘यह मत कहो कि मुझे विषय दो, यह कहो कि मुझे दृष्टि दो।‘ प्रभु नारायण वर्मा ने रमाकंत श्रीवास्तव की कुछ कहानियों का उल्लेख करते हुए कहा कि नई कहानी के हद से बाहर निकलने की जद्दोजहद उनके लेखन में दिखती है। कभी कभी उनकी सुंदर भाषा कहानी पर भारी पड़ जाती है। इस सत्र का संचालन बसंत त्रिपाठी ने किया।
इसके बाद तीसरे सत्र में ’कहानी के नए इलाके में’ विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए नीरज खरे ने कहा कि भले ही रमाकांत श्रीवास्तव के बारे में यह कहा गया कि वह नई कहानी के समय से लिख रहे हैं लेकिन वह नई कहानी के साठोत्तरी दौर में सीमित नही है। वह लगातार लिख रहे हैं। वह इस दौर के महत्वपूर्ण कथाकार है। उनकी सामाजिक पक्षधरता बहुत स्पष्ट है।
इसके उपरांत ’समकालीनता से साक्षात्कार की कथा विधि’ विषय पर विनोद साव, आनंद बहादुर, दिनेश भट्ट और कैलाश वनवासी ने अपना वक्तव्य दिया। संचालन जयप्रकाश ने किया। शाम को अंतिम सत्र में रमाकांत श्रीवास्तव का कहानी पाठ किया।