” शहर भर के मरीजों से मोहब्बत करना , हमने सीखा है यूं ही इबादत करना”

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*1जुलाई चिकित्सक दिवस पर विशेष*                    ————————————————————— *डॉक्टर अरविंद नेरल प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष पैथालाॅजी विभाग जे एन एम मेडिकल कालेज *        ————————————————————— “क्वाचिदर्थःक्वाचिद् मैत्रीःक्वाचिधर्मोक्वाचिधशः।
क्रियाभ्यासःक्वाचिच्चेवचिकित्सा नास्ति निष्फला॥”
चिकित्सा कभी निष्फल नहीं होती, कहीं पर मित्रता हो जाती है तो कहीं अर्थ की प्राप्ति होती है । कहीं पर यश और सम्मान मिलता है, कहीं पर पुण्य की प्राप्ति होती हैऔर कुछ भी न मिले तब भी क्रियाभ्यास तो निश्चित ही मिलता है।चिकित्सक अपने पर्चों में शब्द नहीं, ज़िंदगी लिखते हैं। यदि आप ध्यान दें तो पायेंगे कि दवाइयों से पहले वे मरीजों के लिए आशा और विश्वास, हौसला और हिम्मत , साहस और सामर्थ भी लिखते हैं। जो मरीज के हृदय में आत्मविश्वास का संचार करते हैं,वे सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक होते हैं।

कई बार चिकित्सक उखड़ती, बंद होती हुई सांसों को सम्भाल लेते हैं और मरणासन्न लोगों को मौत के मुंह से निकालकर उन्हे नई ज़िंदगी का वरदान देते हैं । वर्ग-जाति-धर्म की सीमाओं से परे ये ईश्वर के प्रतिनिधि हर बीमार को एक मानव मात्र के रूप में देखते हुये उनके शारीरिक – मानसिक पीड़ाओं को दूर करने का भरपूर प्रयास करते हैं। ज़ख्म कितना भी गहरा हो वे न हिचकिचाते हैं नसंकुचाते हैं और घाव की गंदगी और बदबू से भी वे अपने कर्तव्यपथ से नहीं डगमगाते। उनका फलसफा ही रहा है-“किसी के जख़्म को मरहम दिया है तूने, समझ ले तूने ख़ुदा की ही बंदगी की है।” वे जानते हैं कि मनुष्य का जीवन सर्वशक्तिमान ईश्वर की दी हुई सबसे बहुमूल्य नेमत है , जिसकी रक्षा करने में वे अपनी जी-जान और पूरा ज्ञान लगा देते हैं – ज़िंदगी बचाते-बचाते जो ज़िंदगी बिता देते हैं
चिकित्सितात् पुण्यतम् न किंचित ..अर्थात चिकित्सा से पुण्यप्रद दुसरा कर्म नहीं है। सदियों से चिकित्सा के एक महान आदर्श व्यवसाय के रूप में मान्यता मिली हुई है। चिकित्सक जीवन उद्धारकर्ताहैं और उन्हें जीवन सौहार्य माना जाता है। “ स्वस्थस्य स्वास्थं रक्षणम्‌मातुरस्यविकारप्रशमंनच ”-स्वस्थ्य व्यक्ति केस्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी को व्याधिमुक्त करना ही एक आदर्श चिकित्सक का प्रयोजन है।

बीमारों के दुःख दर्दके प्रति उनकी संवेदनशीलता इतनी प्रबल होती है कि किसी चिकित्सक का क्लिनिक से छुट्टी ले कर ससुराल या शादी में पहुंचना उतना ही मुश्किल होता है जितना पुरानी फिल्मों में गवाह का कोर्ट पहुंचना होता था ।एक अच्छे और मानवीय पहल और संवाद से वे रोगी की आधी परेशानीयां हर लेते हैं। चिकित्सक का सुहृदय आशावादी रुख किसी जादुई दवा से ज्यादा चमत्कार कर सकता है। वे जानते हैं कि सिर्फ दवाईयां ही असर नहीं करती है बल्कि उनके चेहरे की मुस्कान , हौसलाअफजाई करने वाली बातें, मधुर वाणी और अडिग विश्वास ज्यादा मायने रखते हैं और दीर्घकालीन प्रभाव डालते हैं। रोगी के प्रति चिकित्सक का व्यवहार एक दार्शनिक, गाईड और मित्रनुमा होताहै।बावजूद इसके, पिछले कुछ वर्षों में चिकित्सक और मरीज के सम्बन्धों में कुछ खटास आई है, जिसकी व्यथा चिकित्सक कुछ यूं बयां करते हैं –
मैं एक चिकित्सक हूँ
मुझे भगवान न समझे
मैं एक इंसान हूँ
इससे आपको भी इंकार नहीं
तुम्हारी ज़िंदगी और मौत के बीच
जाने कितनी बार अड़ा था
हक़ के लिए चिल्लाया तो अभद्र कहलाया
थक गया तो गुनहगार
फीस मांगी तो लालची
अस्पताल खोला तो व्यापारी
दोहरे समाज में, मैं भी एक जान हूँ
हां, में एक चिकित्सक हूँ
लेकिन पहले एक इंसानहूँ।